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क्यों कांग्रेस से गठबंधन अखिलेश यादव के लिए कांटों का ताज?

क्यों कांग्रेस से गठबंधन अखिलेश के लिए कांटों का ताज?

क्यों कांग्रेस से गठबंधन अखिलेश यादव के लिए कांटों का ताज - सोमवार को जिस तरह से अखिलेश यादव ने राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा से दूर रहने की बात कही है उसे यही संदेश जाता है कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में सब कुछ नहीं ठीक है और उत्तर प्रदेश के चुनाव में दोनों पार्टियों का रास्ता अलग-अलग हो सकता है

लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का ‘विजय रथ’ रोकने के लिए बना विपक्षा गठबंधन ‘इंडिया’ सियासी मैदान में उतरने से पहले ही बिखर गया है। पहले ममता बनर्जी, फिर नीतीश कुमार और अब आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी के अलग होने के बाद समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस को अपने तेवर दिखा दिए हैं।

एक तरफ कांग्रेस के नेता एक के बाद एक झटका देते हुए पाला बदल रहे हैं। तो दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के साथी दलों का भी व्यवहार कुछ समझ से बाहर है।

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोमवार को राहुल गांधी की न्याय यात्रा से एक बार फिर दूरी बनाते दिखे | अखिलेश ने कहा कि कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग के फाइनल हुए बिना वो भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल नहीं होंगे |

सोमवार को जब पत्रकारों ने अखिलेश यादव से भारत जोड़ो न्याय यात्रा को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, ‘फिलहाल समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच बातचीत जारी है। कई दौर की बातचीत हो चुकी है। कई सूचियां उधर से आईं और सूची इधर से भी गई। जिस दिन सीटों का बंटवारा फाइनल हो जाएगा, समाजवादी पार्टी उनकी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल हो जाएगी।’

समाजवादी पार्टी के महासचिव राजेंद्र चौधरी की ओर 17 सीटों का ऑफर दिया गया है. जबकि कांग्रेस पार्टी कम से कम 21 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है | जिस तरह से समाजवादी पार्टी सीट शेयरिंग की बात कर रही है उससे तो यही लगता है की अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के इच्छुक नहीं है |

2017 में समाजवादी पार्टी ने विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया | 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस को गठबंधन में 105 सीटें दी थी लेकिन कांग्रेस महज 7 सीटें जीत पाई थी | दरअसल यूपी में कांग्रेस की जमीन नहीं है. 2017 के बाद कांग्रेस संगठन और कमजोर ही हुआ है |

 

2019 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने करीब-करीब बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा. बीएसपी को 10 सीटें मिल गईं जबकि समाजवादी पार्टी सिर्फ 5 सीटें ही मिल सकीं. इस गठबंधन ने भी अखिलेश यादव को सबक सिखाया. 

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